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सोच को बदलें

चिंतन के क्षण
चिंतन के क्षण
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2015,अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में हमारे पड़ोसी की बिटिया का विवाह संस्कार था | इस समारोह में भाग लेने उन की बहन विदेश से आई थी | न जाने कैसे उनका पास-पोर्ट खो गया | दूसरे पास-पोर्ट के लिए सारी कारवाई पूरी करके पास-पोर्ट आफिस भेज दी | पुलिस वेरिफिकेशन (verification) के लिए पुलिस का कर्मचारी उन के घर आया तो उन्होंने हम दो पड़ोसियों को बुलवा लिया | सारी कारवाई करने के उपरांत जब कर्मचारी जाने लगा तो घर की महिला ने उसे पांच सौ रूपये देने चाहे परन्तु उस ने लेने से इंकार कर दिया तो महिला ने आग्रह पूर्वक देते हुए कहा कि आप विवाह वाले घर आये हैं, बधाई के रूप में इसे स्वीकार कर लीजिये, परन्तु कर्मचारी ने बड़ी ही शिष्टा के साथ हाथ जोड़ दिए और उसने वह राशि स्वीकार नहीं की | कर्मचारी तो चला गया परन्तु अपनी व अपने विभाग की छवि जो हमारे मन-मस्तिष्क में थी उस का दृष्टिकोण ही बदल गया और हमें एक नई सोच दे गया | यह हमारे लिए एक सुखद क्षण था जिसे केवल अनुभव ही किया जा सका | ऐसे ही कई सुखद क्षण होते हैं, जिन्हें जीवन पर्यन्त स्मरण रखते हैं, उनकी अमिट छाप हमारे मस्तिष्क पर पड़ी रहती है | एक बार कहीं जा रहे थे तो कार का टायर रास्ते में पंक्चर हो गया था | टायर को बदलने की कोशिश कर ही रहे थे कि दूर से एक लड़का जो पाश्चात्य वेश-भूषा में था और ऐसे युवा वर्ग की भी छवि हम सामान्य जन ने अपने मन-मस्तिष्क में कोई विशेष अच्छी नहीं बना रखी है, आया और झट से टायर बदली कर के चला गया, पर जाते-जाते हमारी सोच को एक नया मोड़ दे गया | कई बार यात्रा समय भी युवा वर्ग बड़े सम्मान पूर्वक अपनी बैठने की सीट हमें देते हैं और यहाँ तक कि हमारा बैग, अटैची भी हमें नहीं उठाने देते, स्वयं उठाने में गर्व अनुभव करते हैं | ऐसे अनेकों सुखद क्षण हमारे जीवन में प्रतिदिन आते रहते हैं परन्तु हम इन्हें अनदेखा कर देते हैं या फिर इन की उपेक्षा कर देते हैं | इन सुखद क्षणों को सदा अपने साथ समेटे रखने का अभ्यास बना लेने में ही सुख की एक विशेष अनुभूति होती है और ये हमे सकारात्मक चिन्तन प्रवाह प्रदान करते हैं | वेदना इस बात की है कि हम में से अधिकांश युवाओं की इन छिपी भावनाओं को समाज के समक्ष उजागर नहीं करते और न ही उन्हें प्रोत्साहित करते हैं और कई बार तो आलोचनात्मक हो कर इन्हें हतोत्साहित भी कर बैठते हैं | मीडिया को विशेष करके समाचार पत्र और सभी टी.वी चैनल्स को भी युवा वर्ग की ऐसी भावनाओं को और इनकी छोटी-छोटी और बड़ी-बड़ी उपलब्धियो को तथा समाज के हर क्षेत्र की विशेषतः विज्ञान के क्षेत्र की उपलब्धियों को जन समूह को अवगत कराने के लिए मुख्य पृष्ठ पर स्थान देना चाहिए व प्राथमिकता देनी चाहिए| एक युवा बेटा जो कुछ समय विदेश में रहने के बाद अपने देश लौटा है, उस ने उस देश की प्रगति का मुख्य श्रेय वहां के मीडिया को दिया है, जो अत्यंत ही प्रशंसनीय व अनुकरणीय प्रयास है | वहां के लोग उद्यमी, पुरुषार्थी एवं राष्ट्र को समर्पित भावना से ओत-प्रोत होते हैं | वहां की सरकार इतनी जागरूक एवं सतर्क रहती है कि उस के नागरिकों को सकारत्मक चिन्तन शैली ही मिले इस लिए उनके समाचार पत्रों के मुख्य समाचार देश के हर क्षेत्र में हुई प्रगति को ही प्रकाशित करते हैं, और ये सब मोटे-मोटे अक्षरों में होते हैं, जो पत्र की सुर्खियाँ होती हैं | ऐसा नहीं हैं कि वहां अप्रिय, आसामाजिक घटनाएँ व अश्लील विज्ञापन नहीं होते हैं, वहां भी होते हैं क्योंकि ऐसी घटनायों से कोई भी समाज अछूता नहीं है परन्तु समाचार पत्र इन को प्राथमिकता नहीं देते | ऐसे समाचार वे भी छोटे-छोटे अक्षरों में समाचार पत्र के अंतिम पृष्ठ पर होते हैं|
हमारे देश में इसके विपरीत ही हो रहा है | नकारात्मक विचारों का स्रोत्र आज मुख्य रूप में मीडिया है, जो प्रातः उठते ही चाय की चुस्की के साथ ही साथ नकारात्मक विचारों का विष पान भी करवा देता है | समाचार पत्र जिस के साथ हमारा दिन शुरू होता है उसका मुख्य पृष्ठ आसामाजिक तत्वों व घटनाओं से भरा रहता है | ये घटनाएँ हमें भीतर ही भीतर आशंकित, भयभीत, अशांत, उदास और असुरक्षित भावनाओं से सदा घिरे रहने को विवश करती रहती हैं, यहाँ तक कि सब को संदेह भरी दृष्टि से देखते हैं | अनिष्ट की भावना सदा बनी रहती है | दूसरी ओर दूरदर्शन जो आज हमारे परिवारों का एक अभिन्न अंग बन चूका है, नकारात्मक सोच में रही सही कसर को पूरी कर रहा है | ठीक ही कहा गया है कि सकारात्मक और नकारत्मक विचार हम अपने परिवेश के अनुसार अर्थात जैसा हम देखते, सुनते व पढ़ते हैं उस के अनुरूप ही उत्त्पन कर लेते हैं | जिन शब्दों को सुनते हैं, पढ़ते हैं और जो कुछ अपने आस-पास देखते हैं, ये सब हमारे अंदर संस्कार के रूप में जमा हो जाते हैं | वही शब्द फिर अनजाने में हमारे मुंह से निकलते हैं | इस लिए शब्दों को सुनते समय सावधानी रखें, गलत शब्द सुनने से, पढ़ने से व देखने से बचें | हमारा व्यक्तित्व हमारे द्वारा उत्पन्न किये विचारों पर ही निर्भर करता है, जिन्हें हम अपने मन से उठा रहे होते हैं | अच्छे-बुरे, सकारत्मक-नकारत्मक, सृजनात्मक-ध्वंसात्मक विचार हो सकते हैं | विचारों की गुणवता के लिए हम स्वयं जिम्मेवार होते हैं | हम जिस प्रकार के विचार उठाते हैं, वैसा ही हमारा स्वभाव बनता है | इसी स्वभावनुसार कर्म करने में प्रवृत होते हैं, जो कालान्तर में भी गहरे संस्कार बन जाते हैं और लगातार करने से हमारी आदत बन जाती है, जिस में हमारा निज का स्वरूप झलकता है | मनीषियों ने भी इसी सिद्धांत को सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है “संकल्पमयः पुरुषः”| इस का भाव भी यही है कि मनुष्य जैसा संकल्प करता है वैसा ही बन जाता है|

नकारात्मक विचार न केवल सोच की व्यापकता और सकारात्मकता को प्रभावित करते हैं अपितु आत्म विकास की प्रक्रिया को रोक कर कुछ नया व उपयोगी करने से भी रोक देते हैं क्योंकि उनसे मात्र निराशा और प्रतिकूलता ही उपजती है | लक्ष्य पर पहुंचने के लिए मनोबल के साथ ही समझ की भी आवश्यकता होती है | जिससे हम निर्णय करने में सक्षम होते हैं कि करना क्या है और कैसे करना है | सकारात्मक सोच से व्यक्ति अनहोनी को भी होनी में बदल देता है | यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि जीवन में सफलता का आधार सकारात्मक सोच भी हो सकती है | विपरीत परिस्थतियों में अडिग रहने वालों को सफलता मिलती है और सकारात्मक सोच उनके मनोबल को कम नहीं होंने देती |
सकारत्मक सोच वाला व्यक्ति हरेक परिस्थति को सहज भाव से लेता है | बड़ी ही सुंदर शिक्षाप्रद गुरु और शिष्य की वार्ता है -गुरु से शिष्य ने कहा “गुरुदेव ! एक व्यक्ति ने आश्रम के लिय गाय भेंट की है”| गुरु ने कहा-“अच्छा हुआ दूध पीने को मिलेगा”| एक सप्ताह बाद शिष्य ने आकर गुरु से कहा- “गुरूजी ! जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, आज वह अपनी गाय वापिस ले गया”| “गुरु ने कहा-अच्छा हुआ गोबर उठाने की झंझट से मुक्ति मिली” परिस्थति बदले तो अपनी मनस्थिति बदल लें, बस फिर दुःख सुख में बदल जाएगा | सुख-दुःख दोनों मन के ही तो समीकरण हैं | सदा सकारात्मक रहें, सदा मधु-ग्राही बनें, जिज्ञासु बनें | प्रतिपल ईश्वर की कृपा का संस्पर्श अनुभव करें | ईश्वर सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ऐश्वर्य प्रदान करते हैं |
राज कुकरेजा /करनाल

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