Menu
blogid : 23168 postid : 1168963

सच्चा सुख

चिंतन के क्षण
चिंतन के क्षण
  • 62 Posts
  • 115 Comments

सच्चा सुख
सुख और दुःख की परिभाषा सामान्य जन प्रायः करते हैं कि जो इन्द्रियों को प्रिय लगे वह सुख और इन्द्रियों को अप्रिय लगे वह दुःख. सुख को हर प्राणी चाहता है और दुःख के चाहने की बात तो दूर रही, दुःख के नाम से भी घबराता है. यह मानव स्वभाव है कि सुख सभी चाहते हैं. सुख की मान्यता भी सभी लोगों की अपनी तरह से अलग-अलग है. कोई धन को सुख मानता है, तो कोई यश, कीर्ति, और भौतिक सुख को सुख मानता है तो कोई अच्छे से अच्छा खान पान को, कोई देशाटन और पर्यटन में सुख की तलाश करता है. ऐसा सम्भव न होने पर दुःखी हो जाता है.
सुख का अर्थ केवल कुछ पा लेना नहीं है, अपितु जो है, उस में संतोष कर लेना भी है. जीवन में सुख तब नहीं आता जब अधिक पा लेते हैं, बल्कि तब आता है जब अधिक पाने का भाव हमारे भीतर से चला जाता है. सोने के महल में आदमी दुःखी हो सकता है.यदि पाने की इच्छा समाप्त नहीं हुई हो, यदि पाने की लालसा मिट गई हो तो झोपडी में भी आदमी परम सुखी हो सकता है. असंतोषी को तो कितना भी मिल जाए, वह हमेशा अतृप्त ही रहेगा.
सुख बाहर की नहीं, भीतर की सम्पदा है. यह सम्पदा धन से नहीं, धैर्य वा संतुष्टि से प्राप्त होती है. हमारा सुख इसी बात पर निर्भर नहीं करना चाहिए कि कितने धनवान हैं अपितु इस बात पर निर्भर करना चाहिए कि कितने संतुष्ट व धैर्यवान है. सुख और प्रसन्नता हमारी सोच पर निर्भर करती है.
सुख गुण दो द्रव्यों का है. सुख गुण ईश्वर और प्रकृति दोनों का है, पर दोनों सुखों में अंतर है. प्रकृति का सुख-दुःख मिश्रित है और क्षणिक होता है. प्रकृति के सुख में चार प्रकार का दुःख है.( परिणाम, ताप, संस्कार और गुण-वृति-विरोध ). ईश्वर के आनन्द में ये चार दुःख नहीं होते. ऋषि पतंजलि जी ने योग दर्शन में सूत्र दिया है—-परिणाम ताप संस्कारदुःखैर्गुणवृतिविरोधाच्च दुःखमेव सर्वं विवेकिनः. विवेकी अर्थात योगी को संसार के सभी पदार्थो में ये चार दुःख दीखते हैं. सुख के साथ दुःख के सूक्ष्म बीज चिपके हैं..इस लिए योग शास्त्र के उपदेष्टा महर्षि ने तो स्पष्ट ही अपने शास्त्र में लिख दिया है कि सुखानुशायी रागः अर्थात राग नामक क्लेश की उत्पति का कारण सुख ही है. यही कारण है कि सब सुविधा-वैभव को पा कर भी पूर्ण शांत नहीं होता, पूर्ण काम नहीं हो सकता.
मनुष्य उन व्यक्तियों और वस्तुयों के पीछे अर्ह्निश पागलों की तरह भाग रहा है, जो स्थायी रूप से उसके पास रहने वाली नहीं हैं. दुःख इस बात का है कि इसे समझते-बुझते भी वह इससे आँखे मूंदे हुए है. सब जानते हैं कि एक न एक दिन मरना है, किन्तु उस मरण को सुधारने का प्रयत्न नहीं करते. मनुष्य अच्छी-बुरी हर परिस्थति में सत्य पथ पर अविचलित चलता रहे तो उसे जीवन में अपने-पराये का बोध और दुःख कभी भी अनुभव नहीं होगा. इच्छाओं के पूर्ण न होने पर भी मनुष्य दुःख पूर्ण जीवन व्यतीत करता है. यदि हम हर क्षण के अनुभव को उपहार की तरह स्वीकार करें तो सुख-दुःख से ऊपर उठ सकते हैं. तथा जीवन यात्रा असीम आनन्द के साथ पूर्ण कर लेंगे. यही तो मुक्ति है. इसके लिए जितना हो सके परोपकार में समय लगाये. मात्र अपने परिवार के लिए ही करते रहना बंधन है.जब यह बंधन टूटेगा तभी मुक्ति के द्वार खुलेंगे. जीवन में शाश्वत सुख सब कुछ अपने लिए संग्रहीत या अपने में ही समेटे रखने में नहीं है. शाश्वत सुख तो अपने अतिरिक्त औरो के बारे में सोचने और उन्हें सुखी देखने तथा उनकी पीड़ा दूर करने में मददगार बनने में है. केवल अपना या अपने परिवार का हित सोचना ही सामाजिक कटुता का कारण बनता है. यदि लक्ष्य भौतिक सुख- वैभव की प्राप्ति तक ही सीमित है तो हमारा जीवन ही तुच्छ है.
मनुष्यों की स्वाभाविक इच्छा है कि हम दुःखों से पूर्णतः छूट कर स्थाई और पूर्ण सुख की प्राप्ति कर सकें. इस की पूर्ति के लिए हमें ईश्वर और आत्मा के बारे भी अवश्य ही जानना होगा. संसार का कोई सुख आत्मा को संतुष्ट नहीं कर सकता है. आत्मा उत्तम से उत्तम सुख को पाना चाहता है और लम्बी अवधि तक चाहता है. उत्तम सुख का स्तर कम न हो. सुख से उबना नहीं चाहता. जिस ऊंचे सुख को प्राप्त किया उस सुख में कमी न आ जाए अर्थात शारीरिक, बौद्धिक हानि न हो. जिस सुख को प्राप्त करना चाहता है,वो है परमात्मा का आनन्द और वो परमात्मा से स्वयं को समर्पित करने से ही मिलता है.परमात्मा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्रार्थना करनी चाहिए. अर्थात सत्य व न्याय का आचरण करना , धर्म से पदार्थों की प्राप्ति करना, धर्म और अर्थ से प्राप्त इष्ट पदार्थों का सेवन करना और सब दुःखों से छूट कर पूर्ण आनन्द में रहना. इस प्रकार मनुष्य सब अभीष्ट वस्तुओं को प्राप्त करके, सब काल में सर्वदा सुखी रह सकता है. सुखी रहने का और कोई मार्ग नहीं हैं.
धियो यो न: प्रचोदयात् ——हे ईश्वर ! आप हमारी बुद्धियों को श्रेष्ठ मार्ग की ओर प्रेरित कीजिये.
राज कुकरेजा /करनाल

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh