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अंधविश्वास
अंध विश्वास एक मनोवैज्ञानिक और संक्रामक रोग है।मनोवैज्ञानिक इस लिए कि यह रोग अपने ही मन की उपज है और संक्रामक इस लिए कि इसके संक्रमण अर्थात छूत से कोई विरला ही बचा हो। अंधविश्वास का एक और नाम वहम भी हो सकता है। अंधविश्वास का अर्थ है— अंधा विश्वास ऐसा विश्वास जिसमें लोग अपनी तर्क बुद्धि नहीं लगाते, उसके सच, झूठ का पता नहीं करते, उसकी वैज्ञानिकता को नहीं जानते, उसे इसलिए मानते हैं क्योंकि दूसरे लोग इसे मानते हैं। कोई अंधविश्वास को लेकर थोड़ी भी भूलचूक नहीं करना चाहता।थोड़ा भी ख़तरा नहीं चाहता हैं और न ही हानि उठाना चाहता है।
छींक आ जाने पर यात्रा रोक देना ,बिल्ली रास्ता काट दे तो आगे न जाना, नज़र न लगे काले रंग का टीका लगा देना और दुकानदार बुरी नज़र से बचने के लिए नींबू और मिर्चों को टाँग देते हैं और नए मकान को भी नज़र से बचाने के लिए नज़र पट्टु लटके मिलते हैं। ऐसी ही बहुत सी प्रथाएँ हैं जिनको लोग बहुत समय से मानते चले आ रहे हैं । यह विश्वास किसने चलाया, कोई नहीं जानता परन्तु इतना तो कहा ही जा सकता है कि जब से विशुद्ध ईश्वर को छोड़ प्रतिमा पूजन चला है तभी से मानव समाज कहीं न कहीं अंधविश्वास और पाखण्ड में फंसता चला गया है। जिस मनुष्य समुदाय में पाखंड अंधविश्वास होता है वह समुदाय धर्म भीरु और विवेक शून्य होता चला जाता है। सृष्टि विरूद्ध मान्यताएं चल पड़ती हैं और स्वार्थी लोग ऐसा होने पर भोली जनता का शोषण करना आरंभ कर देते हैं।अंधविश्वास जन सामान्य में भय उत्पन्न करता है तो दूसरी ओर पाखण्डी पंडे- पुजारियों की जीविका का साधन बनता है।
अंधविश्वास केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में है। इंग्लैंड में बटन के टूटने या सीढ़ी के नीचे से निकलने को अपशकुन मानते हैं। चीन, जापान सभी देशों में तरह तरह के अंधविश्वास प्रचलित हैं। भारत में अंधविश्वास अधिक है। इसका कारण यह है कि यहाँ अनेक जातियाँ और मत मतान्तर। हैं। यहाँ की संस्कृति मिश्रित हो गई है।इसाई, मुसलमानों की कुछ बातें हिंदुओं ने अपना ली तो हिंदुओं की बातों को मुसलमानों,इसाइयों ने अपना ली।इसलिए यहाँ अंधविश्वासों की संख्या भी अधिक है।अंधविश्वासों के घेरे में केवल अनपढ़ लोग हों ऐसी बात नहीं है , बड़े बड़े समझदार लोग भी डर जाते हैं। छींक आ जाने पर या बिल्ली का रास्ता काट देने पर बड़े -बड़े पढ़े-लिखों को भी यही सुनते पाया गया है कि थोड़ी देर रुक जाओ, पूछने पर कि क्या वह इन दकियानूसी बातों में विश्वास करते हैं? वे बोलते हैं कि थोड़ी देर रुक जाने में क्या नुकसान हो जाएगा ?
कहने का तात्पर्य है कि अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी है कि इससे बच पाना बहुत मुश्किल है।
कई बार हम इसलिए चुप हो जाते हैं कि यदि कुछ ऊँच नीच हो गया तो सारा दोष लोग हमारे सर पर ही मढ़ देंगे। अब प्रश्न यह है कि क्या हमें अंधविश्वास में विश्वास करना चाहिए ?आज का युग वैज्ञानिक युग है, परन्तु सोच तो वैज्ञानिक नहीं है, प्रमुख कारण है कि स्वार्थी, कपटी पाखण्डी बाबा लोगों का और बिकाऊ टी वी चैनलों से रात-दिन अन्धविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है, कुबेरलक्ष्मी, धनवर्षा यन्त्र,हनुमान रक्षा कवच आदि-आदि प्रलोभनों के जाल में लोग फँसते जा रहे हैं। यह बात भली-भाँति जान लेनी चाहिए कि यदि धन वर्षा यन्त्र इतना प्रभावशाली होता तो भारत के 20 करोड़ लोग भूखे न मरते, हनुमान रक्षा कवच इतना प्रभावित सिद्ध होता तो भारत के सभी राजनेताओं को Z+, Y श्रेणी की सुरक्षा पर लाखों खर्च न करके सबके गले में हनुमान यन्त्र लटका देते. चमत्कार न होते हैं और न ही हो सकते हैं। प्रकृति नियमों के विरुद्ध कोई घटना घट नहीं सकती। कही सुनी बातों पर बिना प्रमाण के विश्वास करना अंधविश्वास है। अंधविश्वास, अंधश्रद्धा से अंधकार ही मिलता है, कभी रोशनी नहीं मिल सकती। जादू-टोना-डोरा-तावीज-टीका-तिलक-माला-अंगूठी-भभूति इत्यादि से कुछ नहीं होता। अनहोनी बात होने लगे तो विज्ञान विफल हो जायेगा, विज्ञान पर कोई विश्वास नहीं करेगा।प्राकृतिक नियम कभी नहीं बदलता। अनहोनी बातों पर मूर्ख, पाखंडी, ढोंगी, हताश कमजोर लोग ही विश्वास करते हैं। जिनको परमात्मा में विश्वास नहीं होता है, न ही स्वयं पर विश्वास करते हैं अर्थात ऐसे लोग आत्मविश्वासी नहीं होते। ऐसे लोग अज्ञान के अंधेरे में स्वयं भी गिरते हैं औरों को भी गिराते हैं।
अंधविश्वास और पाखण्ड को बढ़ावा देने में राजसत्ता अधिक दोषी है क्योंकि राजसत्ता का आश्रय लेकर ही अज्ञान और अंधविश्वास का राज लंबा चलता है। संगठित धर्माचार्यो औऱ पुरोहितों की परम्परा जब भगवान के नाम पर अज्ञान और अंधविश्वास का राज चलाती है और राजनैतिक सता इसमें सहयोग देती है। तब तो अंधविश्वास ज़ोरों से पनपता है क्योंकि एक तो ऐसे लोग स्वयं अंधविश्वास में श्रद्धा रखने वाले होते हैं और दूसरा उनका निजी स्वार्थ भी इस में छिपा हुआ होता है।जब अंधविश्वास को फैलाने वाले वर्ग की भी इस से रक्षा होती है, तब ये दोनों सत्ताएं क्रूर और मानव प्रगति विरोधी होती हैं।
विज्ञान ने बच्चों को तर्क करना और कारण पता करना सिखा दिया है फिर भी आज के बच्चे अंधविश्वास से दूर नहीं हैं ।इसे वे बकवास नहीं कहते हैं, क्योंकि टी वी चैनलों पर प्रसारित धारावाहिक औऱ कपटमुनियों के कपट अंधविश्वास का कूड़ा कचरा इनके मनोमस्तिषक में भरकर निजी प्रयोजनों को सिद्ध करने की होड़ में लगे हुए हैं । धीरे धीरे अंधविश्वास बढ़ता ही जा रहा है। आज वटस्एप का युग है। लगभग सभी वर्गों के लोग इस से जुड़े हुए हैं और परस्पर एक दूसरे को संदेश फारवर्ड करते रहते हैं और चाहते हैं कि उनके संदेश अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे, इस लिए संदेश में अंतिम पंक्ति में लिखा मिलता है कि इस संदेश को अन्य दो-तीन ग्रुसस को फारवर्ड करने से खुश खबरी मिलेगी और न फारवर्ड करने से अप्रिय समाचार मिलेगा। विडंबना तो यह है कि बिना विचारे अधिकतर लोग ऐसा करने में दोष नहीं समझते। हमारा पौराणिक समुदाय कथाओं का आयोजन करते हैं और पुराणों की बिना सर पैर वाली अंधविश्वास कीे गर्त में ढकेलने वाली कहानियों से जन सामान्य का मनोरंजन करते रहते हैं लोगों की तर्क शक्ति पर प्रहार किया जा रहा है ।अंधविश्वास से बचने का सबसे आसान तरीका है , अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा कीजिए। आत्मविश्वास ही वह हथियार है जो आपको लड़ने की शक्ति देता है।ईश्वर से बड़ा कोई शक्तिशाली नहीं है।यदि आप उसे हर जगह अनुभव करते हैं तो डरने की क्या बात है? ईश्वर की सत्ता में दृढ़ विश्वास रखने से बल बड़ता है,ईश्वर से लड़ने की हिम्मत किसमें है ? वह सब दुरितों को दूर करने वाला है। उस पर अखंड विश्वास रखिए।अपने को कमजोर मत बनाइए।
एक बार अंधविश्वास को तोड़कर देखिए। जब कोई नुकसान नहीं होगा तो आत्मविश्वास अपने आप बढ़ जाएगा। ईश्वर में जब विश्वास कम हो जाता है तब आत्मविश्वास खत्म हो जाता है। उसके खत्म होते ही अंधविश्वास तो क्या बहुत सी कमजोरियाँ जिन्हें व्यक्ति जीवन का अंग समझ लेता है वे भी दूर हो जाती हैं। अतः ईश्वर में दृढ़ विश्वास और सच्ची श्रद्धा रखने वाले लोग आत्मविश्वासी होते हैं,अंधविश्वासी नहीं होते। आत्मविश्वास को जगाइये , अंधविश्वास को दूर भगाइए। भय मुक्त जीवन का आनन्द लीजिए।सत्य को जाननेऔर समझने के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती कृत सत्यार्थ प्रकाश का स्वाध्याय अवश्य ही करना चाहिए।
ईश्वर से प्रार्थना है कि हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
राज कुकरेजा / करनाल
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