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फलित ज्योतिष (एक मिथ्या भ्रम)

चिंतन के क्षण
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फलित ज्योतिष (एक मिथ्या भ्रम)
जागरण जंक्शन के ब्लाग पर जो बंधु फलित-ज्योतिष के लेखों द्वारा जन सामान्य में भ्रमजाल फैला रहे हैं, उन सभी से अनुरोध है कि हठ और दुराग्रह को छोड़ कर मेरे इस लेख ज्योतिष को अवश्य ही पढ़े और विचार करें।
फलित ज्योतिष ने भारत के पतन एवं अकल्याण की प्रभूता सामग्री प्रस्तुत की है।फलित-ज्योतिष और प्रतिमा पूजन भारत देश की उन्नति में जंजीरें हैं, जिनमें देश बुरी तरह से जकड़ा हुआ है और अज्ञानी तथा स्वार्थी लोग इन से मुक्त होना ही नहीं चाहते। यह अंध विश्वास की शृंखला बहुत ही लम्बी-चौड़ी है।इस लम्बी-चौड़ी सूची में फलित ज्योतिष नम्बर एक पर है, ऐसा कहना व लिखना न तो अंसगत है और न ही अतिशयोक्ति।भारतवर्ष को अवनति के गढ़े में ढकेलने वाला बहुत बड़ा कारण भी है-फलित ज्योतिष।यह फलित ज्योतिष कई भागों में विभक्त है,यथा जन्म पत्री ,राशिफल ,कुण्डली मिलान ,मुहूर्त्त,नवग्रह पूजा और दिशाशूल।
फलित ज्योतिष क्या है? फलित ज्योतिष में ज्योतिषी जी बताते हैं कि फलाने-फलाने ग्रह के योग के क्या-क्या परिणाम हो सकते हैं।यदि जन्मलग्न में राहु हो और छठे स्थान में चन्द्रमा हो,यदि जन्मलग्न में शनि हो और छठे स्थान में चन्द्रमा हो तथा सातवें स्थान में मंगल हो,जन्मलग्न में तीसरे स्थान में भौम हो,तो ऐसे बालक के जन्म को शुभ नहीं माना जाता। इसी प्रकार यदि रात को बच्चा उत्पन्न होगा तो अमुक प्रकार का होगा।रविवार को होगा तो अमुक प्रकार का होगा।किसी कन्या का विवाह अमुक समय में हो गया तो वह विधवा हो जायेगी, बालक के जन्म लग्न में दोष है तो बालक के स्वयं के लिए, माता-पिता और भाइयों के लिए शुभ नहीं है अपितु अहितकारी भी हो सकता है आदि-आदि। कन्या यदि मांगलिक है तो उसके विवाह के लिए लड़का भी मांगलिक ही होना चाहिए। नवग्रहों के विघ्न हटाने के उपाय भी इन धूर्त लोगों ने बना रखे हैं कि ऐसा-ऐसा दान करना, ग्रह के मन्त्र का जाप करवाना और नित्य ब्राह्मणों को भोजन करवाना आदि-आदि।
आज कोई भी कार्य किया जाए जैसे मुण्डन हो,यज्ञोपवीत हो,विवाह हो,दुकान का उद्घाटन हो,गृहप्रवेश हो या भवन का शिलान्यास हो ऐसे प्रत्येक बात में मुहूर्त्त देखा जाता है।ग्रह-नक्षत्र और कुण्डलियाँ मिलाई जाती हैं,परन्तु फिर भी व्यापार में घाटे हो जाते हैं,मकान बनने में भी विलम्ब हो जाता है,स्त्रियाँ विधवा हो जाती हैं। जोतिष सच होते तो जन्म पत्री और कुंडलियां आदि मिला कर किये हुए विवाहो में कभी तलाक ना होता। नजर लगने से बिज़नेस में घाटा आता तो बिल गेट्स, अम्बानी जैसे कब के सड़क पर आ जाते क्योंकि इनको तो सारी दुनिया नजर लगाती है।सूरज को चढ़ाया पानी सूरज तक जाता तो हमारी जनता ने सूरज को अब तक ठंडा कर दिया होता।पंडितो के हवन और ग्रंथिओ के अखंड पाठ करवाने से भविष्य बदल जाता तो अब तक इन लोगों के बच्चे जरूर अरबपति होते।
पलक झपकने का नाम निमेष है।१८ निमेष की एक काष्ठा,तीस काष्ठा की एक कला,तीस कला का एक मुहूर्त्त और तीस मुहूर्त्त का एक दिन-रात होता है।इस प्रकार मुहूर्त्त तो काल की संज्ञा है।क्या यह किसी के ऊपर चढ़ सकता है?या किसी को खा सकता है?अथवा किसी को भस्म कर सकता है?कदापि नहीं।मुहूर्त को ही लीजिए, पिछले दिनों आरक्षण को लेकर हरियाणा की बिगड़ी और शोचनीय स्थिति को लेकर वटस्एप पर पोस्ट पढ़ने को मिल रही थी, ऐसी स्थिति में चिन्तित होना स्वाभाविक ही था। एक तरफ तो उपद्रव हो रहे थे और दूसरी ओर जो लोग अपने घरों में विवाह इत्यादि आयोजन करने वाले थे, उन्हें अनेकों विघ्नों और बाधाओं से जूझना पड़ रहा था। यह फरवरी माह ॠतु अनुकूल होने से विवाह इत्यादि अवसरों के लिए उपयुक्त समय माना जाता है और ज्योतिषी लोग अपने ग्रह नक्षत्रों के आधार पर शुभ मुहूर्त निकालते हैं। इन दिनों बहुत सारी आयोजित शादियां या तो स्थगित हो गई या फिर जैसे तैसे निपटा दी गई। मेरे मन में बार बार एक ही विचार कौंध रहा था कि जो पंडित वर्ग राशि फल और मुहुर्त निकलाने में स्वयं को निपुण मानते हैं तो क्यों नहीं बताया कि यह काल उपद्रव का काल है, उनके निकाले मुहुर्त के अनुसार तो विवाह हो ही नहीं सके। मेरा यह सब लिखने का आशय यह है कि अपने अन्दर तर्क बुद्धि से विचार करें कि राशि फल और मुहुर्त यह सब भ्रमजाल है और इस भ्रमजाल में फस कर अपना समय, ऊर्जा और धन का अपव्यय न करें अपितु ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखें, उस ईश्वर की ही स्तुति, प्रार्थना और उपासना करें जिससे हमारा आत्मिक, मानसिक और शारीरिक बल बड़ जाता है। काल रचना ईश्वर की की हुई है और इसमें शुभ और अशुभ का प्रश्न ही नहीं उठता है। अपनी-अपनी सुविधा अनुसार ही आयोजनों को आयोजित करने चाहिए। काल गणना के लिए ज्योतिषी के पास जाना उचित नहीं है। मेरा एक परिवार में विवाह उत्सव पर जाना हुआ,आश्चर्य हुआ, जब कन्या की माँ ने तो मूहुर्त को लेकर हद ही पार कर दी। बेटी का विवाह संस्कार संपन्न हो गया तो पंडित से पूछा कि बेटी कब पहला फेरा डालने माँ के घर आए, इसके लिए मूहुर्त निकाल दें। अब मुझसे रहा न गया और मैंने कहा कि आप की बेटी का अब अपने माता-पिता से मिलने के लिए भी शुभ -अशुभ समय देखना होगा? धिक्कार है, आप जैसे माता-पिता को।ज्योतिषी लोग अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह तो लग्न देख-दाखकर और कुण्डली आदि मिलाकर ही करते हैं,फिर उनकी लड़कियाँ विधवा क्यों हो जाती हैं?ज्योतिषियों के अपने लड़के क्यों मर जाते हैं? इनके लड़के परिक्षाओं में फेल क्यों हो जाते हैं?ये ज्योतिष पृथिवी में गड़े धन को जानकर स्वयं उसे क्यों नहीं निकाल लेते? व्यापार में तेजी-मन्दी को जानकर स्वयं करोड़पति क्यों नहीं हो जाते? यदि मुहूर्त्त देखना कोई लाभदायक बात है तो जिन लोगों में मुहूर्त्त नहीं देखा जाता,उन्हें हानि होनी चाहिये,परन्तु यहाँ तो हिसाब ही उल्टा है।हिन्दुओं में जहाँ लगन और मुहूर्त्त देखकर विवाह किये जाते हैं,वहाँ विधवाओं की संख्या अन्य देशों की अपेक्षा बहुत अधिक है।मुहूर्त्त देखने को लेकर मुझे राष्ट्रपति एपीजे की याद आ रही है, जब शपथ समारोह के आयोजन से पूर्व श्री प्रमोद महाजन जी ने उनसे पूछा कि क्या वे इस आयोजन के लिए शुभ मुहूर्त देखना चाहेंगे तो उन्होंने बड़ा ही सुन्दर सा जवाब दिया कि समय तो सदैव ही शुभ माना जाता है और जिस दिन सुविधा हो, तिथि तय कर लें। उन का यह उत्तर सुनकर तो मेरा हृदय गदगद हो गया औऱ मस्तक श्रद्धा से उनके चरणों में झुक गया। आजकल हमारे अधिकांश मंत्री तो मूहुर्त के चक्कर में फंसे पड़े हैं।
लोग इन झूठे ज्योतिषियों से पूछते फिरते हैं, “मेरा भाग्य कैसा है”? भाग्य को उत्तम बनाने के लिए पुरुषार्थ नहीं करते। याद रखना चाहिए कि हाथ की मेहनत में भाग्य छिपा है, हाथ की रेखाओं में नहीं। झूठ बोल-बोलकर भोले-भाले लोगों को ठगने वाले, और ब्रह्मांड भर की भूत भविष्यत् की बातें बताने वाले इन बेईमान ज्योतिषियों में यदि दम है, तो बताएँ भारत का विमान AN 32 कहाँ है, जो काफी दिनों से लापता है।
किसी भी कार्य को आरम्भ करने पर नवग्रहपूजा को टकापन्थी पण्डित अनिवार्य बताते हैं।नवग्रहपूजा में भी सबसे पूर्व गणेश का पूजन होता है।एक मिट्टी की डली पर कलावे के दो-तीन चक्कर लगा दिये जाते हैं और उस पर धूप,दीप,नैवेद्य आदि चढ़वाया जाता है।यह भी पण्डित के खाने कमाने का ढ़ोंग है।बार-बार टका चढ़वाकर ये लोग पर्याप्त राशि इकट्ठी कर लेते हैं।जड़ मिट्टी का ढेला तो अपनी रक्षा भी नहीं कर सकता,दूसरे के विघ्न क्या दूर करेगा? दूसरों के साथ किए गए उत्तम व्यवहार से हम दो मिनट में अपना भविष्य सुंदर बना सकते हैं। इसके विपरीत आचरण से हम अपना भविष्य बिगाड भी सकते हैं। अपना भविष्य पूछने के लिए किसी ज्योतिषी के पास जाने की आवश्यकता नहीं है।
फलित-ज्योतिष का एक अंग दिशाशूल भी है।दिशाशूल का अर्थ है कि विशेष दिनों में विशेष दिशा की यात्रा करना उत्तम है और अमुक दिनों में अमुक दिशाओं में जाना हानिकारक है। यदि विशेष दिन में दिशा विशेष में नहीं जाना चाहिये तो उस दिन उस दिशा में जाने वाली सभी मोटरें,कारें,ट्रक,रेलगाड़ियाँ और वायुयान बन्द कर देने चाहियें, परन्तु हम देखते हैं कि रेलें और मोटरें प्रतिदिन प्रत्येक दिशा में जाती हैं।यदि दिशाशूल का कोई प्रभाव होता तो उस दिन भी यातायात के साधनों पर और यात्रियों पर भी अवश्य ही प्रभाव पड़ना चाहिए, परन्तु देखते हैं सप्ताह के सातों दिन और चौबीस घण्टे लगातार यातायात चल ही रहा है, कोई विशेष प्रभाव पड़ा हो,ऐसा तो आज तक किसी ने भी अनुभव नहीं किया है।
पाखण्डियों ने अद्भुत गप्पें गढ़ी हुई हैं,जैसे अमुक दिन को स्त्री को ससुराल नहीं भेजना चाहिये।अमुक दिन ससुराल से लड़की मायके नहीं जा सकती। यह सब भी वहम और पाखण्ड ही है।यह फलित ज्योतिष सर्वथा मिथ्या है।यह लोगों को ठगने का पाखण्ड़ है।
वैदिक साहित्य में नवग्रहपूजा पाखण्ड है।ज्योतिषियों द्वारा स्वीकृत नवग्रह ये हैं-सूर्य,चन्द्रमा,मंगल,बुध,बृहस्पति,शुक्र,शनि,राहु और केतु।राहु और केतु वस्तुतः ग्रह नहीं हैं।ये दोंनो चन्द्रमा के मार्ग की कल्पित ग्रन्थियाँ हैं।शेष सात में भी सूर्य और चन्द्रमा ग्रह नहीं हैं।
कोश में ग्रह का अर्थ इस प्रकार दिया गया है-“सूर्य की परिक्रमा करने वाला तारा।”
इस परिभाषा के अनुसार सूर्य नक्षत्र सिद्ध होता है।चन्द्रमा प्रकाशशून्य है और सूर्य की परिक्रमा न करके पृथिवी की परिक्रमा करता है,अतः यह भी ग्रह नहीं है।इस प्रकार ग्रह कुल पाँच ही रह जाते हैं।जब ग्रह पाँच ही हैं तब नवग्रहपूजा कैसी?
जिन मन्त्रों का पाठ नवग्रहपूजा में होता है जब वे मन्त्र ही नवग्रहपूजा के नहीं हैं तो यह पूजा और फल सब कुछ व्यर्थ हुआ,अतः बुद्धिमानों को इस पाखण्ड से बचना चाहिये।
इन फलित ज्योतिष के अन्तर्गत ही हस्तरेखा भी है।यह भी मिथ्या है।अनेक लोग ज्योतिषियों को अपना हाथ दिखाकर अपने को ठगाते हैं।राशिफल को देखना, यह एक और भयंकर रोग देश में फैला हुआ है। इस रोग को फैलाने में मीडिया के सभी चैनलों का,सभी पत्र- पत्रिकाओं का, जागरण जंक्शन के ब्लाग पर कुछ बुद्धिजीवियों का वर्ग मुख्य रूप से भूमिका निभा रहा है।यदि आप रेखाओं के भरोसे ही बैठे रहे तो कुछ नहीं होगा।कर्म द्वारा,प्रबल पुरुषार्थ द्वारा हम सारे संसार का शासन भी कर सकते हैं।अतः कर्म ही करना चाहिए।
ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण स्थान है।ज्योतिष को वेद के षड़अङ्गों में से एक माना गया है।वेदों में बहुत से ऐसे मन्त्र विद्यमान हैं जिन्हें ज्योतिष की सहायता के बिना समझा ही नहीं जा सकता,परन्तु यह सारा महत्व गणित ज्योतिष का है,फलित का नही।महर्षि दयानन्द कृत सत्यार्थ प्रकाश का स्वाध्याय कर लेने से कोई भी व्यक्ति भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी आदि कल्पित पदार्थों से कभी भयभीत नहीं होता । हम स्वयं को फलित ज्योतिष, जन्म-पत्र, मुहूर्त, दिशा-शूल, शुभाशुभ ग्रहों के फल, झूठे वास्तु शास्त्र आदि धनापहरण के अनेक मिथ्या जाल से स्वयं को बचा लेंगें ।कोई पाखण्डी साधु, पुजारी, गंगा पुत्र हमको बहका कर हमसे दान-पुण्य के बहाने अपनी जेब गरम नहीं कर सकेगा ।शीतला, भैरव, काली, कराली, शनैश्चर आदि-आदि देवता, जिनका वस्तुतः कोई अस्तित्व ही नहीं है, हमारा कुछ भी अनिष्ट नहीं कर सकेंगे । जब वे हैं ही नहीं, तो बेचारे करेंगे क्या ?
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता और विधाता स्वयं है।ज्योतिष के द्वारा आपके भाग्य का निर्माण नहीं हो सकता।ज्योतिष आपको धन-सम्पत्ति नहीं दे सकते।महर्षि दयानन्द के इन वचनों को सदा स्मरण रखें –
“जो धनाढ्य, दरिद्र, प्रजा, राजा, रंक होते हैं, वे अपने कर्मों से होते हैं, ग्रहों से नहीं।”-(सत्यार्थप्रकाश ,एकादशसमुल्लासः)
राज कुकरेजा/करनाल

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