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ईश्वर सर्वशक्तिमान है।

चिंतन के क्षण
चिंतन के क्षण
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ईश्वर सर्वशक्तिमान है।
ईश्वर सर्वशक्तिमान है क्योंकि वह सब कुछ कर सकता है।लोक में ईश्वर के प्रति यह एक मिथ्या धारणा बनी हुई है। तात्पर्य यह है कि जो सब कुछ कर सकता है वह ईश्वर है। परन्तु ईश्वरीय नियम अटल और अपरिवर्तनशील होते हैं। अनहोनी कभी होनी नहीं हो सकती और होनी कभी अनहोनी नहीं हो सकती। ईश्वर कभी अपने नियमों को नहीं तोड़ता और न ही तोड़ सकता है। सृष्टि के आदि में ईश्वर ने जो संविधान बना दिया, उस का उलंघन न स्वयं ईश्वर कर सकता है और न ही उसकी प्रजा। ईश्वर कोई जादूगर या मदारी नहीं है, जो दिन को रात बना दे और रात को दिन या अमृत को विष बना दे और विष को अमृत ।चमत्कार न होते हैं और न ही हो सकते हैं। प्रकृति नियमों के विरुद्ध कोई घटना घट नहीं सकती। ईश्वर मिथ्याचरण नहीं कर सकता, न कथन, न व्यवहार में, न वह अपनी जगह कोई नकली ईश्वर बना सकता है। कही सुनी बातों पर, बिना प्रमाण के विश्वास करना अंधविश्वास है। अंधश्रद्धा, अंधविश्वास से अंधकार ही मिलता है, कभी रोशनी नहीं मिलती। वस्तुतः ईश्वर अपने गुण -कर्म- स्वभाव तथा सृष्टि क्रम के विरुद्ध वह कुछ भी नहीं कर सकता कारण के बिना कार्य, अभाव से भाव की उत्पत्ति आदि ऐसे अनेक कार्य हैं जिन्हें वह नहीं कर सकता।
ईश्वर सत्य है और उसके नियम भी सत्य ही है। ।सृष्टिक्रम या स्वनिर्मित संविधान के विपरीत कुछ भी कर सकने में वह सर्वदा असमर्थ है। सर्वशक्तिमान का इतना ही तात्पर्य है कि संविधान के अंतर्गत जगद्रचना का जो कार्य वह करता है, उसके करने में वह अन्य किसी की अपेक्षा नहीं रखता। वह अपने असीम सामर्थ्य द्वारा मूल उपादान जड़ प्रकृति को प्रेरित करता है
ईश्वर के सर्व शक्तिमान होने का अर्थ है कि ईश्वर के जो उसके स्वाभाविक कर्म हैं – जैसे कि सृष्टि की उत्पत्ति – स्थिति – प्रलय करना, जीवों के कर्मों की कर्मफल की व्यवस्था करना और वेद ज्ञान देने इत्यादि कर्मों में उसे किसी की सहायता की अपेक्षा नहीं है, इन्हें वह अपने स्वभाविक सामर्थ्य से कर सकता है। जिन कार्यों को जीव अल्प सामर्थ्य से नहीं कर सकता, उन कार्यों को ईश्वर कर सकता है क्योंकि ईश्वर अनन्त सामर्थ्य वाला है,इसलिए कर सकता है। ईश्वर ने जीव को जो अल्प सामर्थ्य दिया है, उससे संतानोत्पत्ति ,उसका पालन,शिल्पविद्या और पाप-पुण्य कर्मों को करने मे जीव स्वतन्त्र है और ईश्वर इस स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप भी नहीं कर सकता है।जैसे जीव कर्मो के करने में स्वतंत्र है,वैसे ईश्वर भी अपने कर्मो को करने में स्वतंत्र है।
ईश्वर सर्वत्र प्रकाश मान है, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को सहज ही अपने वश में कर सकता है और पूरे जगत को धारण व उसकी पालना करता है। अपने अनन्त सामर्थ्य से वेद विद्या और त्रिगुणात्मक प्रकृति,प्रलय, और महासमुद्र को उत्पन्न करता है। परमेश्वर संवत्सर वर्ष और फिर इनके विभाग, दिन रात, क्षण,मुहूर्त आदि की रचना करता है।जैसे पूर्व कल्प में सूर्य और चंद्र की रचना करता है, वैसे ही इस कल्प में भी रचता है। ठीक उसी प्रकार पृथ्वी लोक ,अन्तरिक्ष और आकाश में जितने लोक हैँ उनका निर्माण भी पूर्व कल्प के अनुसार ही करता है।
ईश्वर ने ही जीवों के पालन हेतु अनेकों पदार्थों की रचना करके दिए हैं। जीवन रक्षक साधन आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथिवी आदि की रचना ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता है क्योंकि किसी अन्य में इन की रचना करने का सामर्थ्य ही नहीं है। अन्न,ओषधि , वन,वनस्पति, फल, फूल इत्यादि सब प्रकार की भौतिक आवश्यकताएँ ईश्वर ही पूरी करता है। सच्चे अर्थों में ईश्वर ही सारे प्राणी जगत का पालन करने वाला है। सृष्टि का संहार भी ईश्वर अपने सामर्थ्य से ही करता है।ईश्वर की व्यवस्था से ही जीवों को किए हुए कर्मों का फल मिलता है।हर कर्म का फल अवश्यमेव मिलता है अच्छे कर्म का फल अच्छा और बुरे कर्म का फल बुरा ही प्राप्त होता है। कोई भी कर्म (पाप या पुण्य) बिना फल दिये शान्त नहीं होता। जीवात्मा को भुगतना ही पड़ता है। कर्म बीज हैं, दु:ख-सुख उसके फल हैं, जैसा बीज होगा फल वैसा ही मिलता है।
वेद प्रभु की पवित्र वाणी है। संसार के अन्य भोग्य पदार्थों की भांति कर्मों की यथार्थ व्यवस्था के ज्ञानार्थ वेदों द्वारा परमेश्वर अपना ज्ञान सृष्टि के आदि में सब मनुष्यों के कल्याणार्थ प्रदान करता है।
संक्षेप में ईश्वर के सर्वशक्तिमान स्वरूप को ईश्वर के पाँच कार्यों को समझने से ईश्वर के सर्वशक्तिमान स्वरुप को सरलता से समझा जा सकता है।ये पाँच कार्य हैं-संसार की उत्पत्ति,संसार का पालन,स्ंसार का विनाश करना,सब जीवों को उनके कर्मों का न्यायपूर्वक फल देना और चारों वेदों का ज्ञान देना।सर्वशक्तिमान का अर्थ इतना ही है कि परमात्मा बिना किसी के सहाय के अपने सब कार्य पूर्ण कर सकता है।
ईश्वर से प्रार्थना है कि वे हमें सुबुद्धि प्रदान करे जिससे हम ईश्वर के सही स्वरूप को समझ सकें।
ओ३म् शान्ति:शान्ति: शान्ति:
राज कुकरेजा /करनाल

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