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आओ सफ़ाई करें।

चिंतन के क्षण
चिंतन के क्षण
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आओ सफाई करें।

“आओ सफ़ाई करें” यह उद्घोष दिया है हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने। सफ़ाई आन्तरिक और बाह्य दोनों ही व्यक्ति के अभिन्न अंग हैं।आन्तरिक अर्थात अपने अन्त:करण को शुद्ध विचारों से स्वच्छ रखना।बाह्य सफ़ाई से तात्पर्य अपने परिवेश को साफ़ रखना होता है।
जन सामान्य में बाह्य सफ़ाई के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से देश में स्वच्छता आन्दोलन चला दिया है। यह स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा आरंभ किया गया राष्ट्रीय स्तर का अभियान है, जिसका उद्देश्य भारत को खुला शौच से मुक्त देश बनाना है और गलियों तथा सड़कों को साफ़ सुथरा रखना है। गंदगी से ही भयानक रोगों के किटाणु पनपते हैं।लोग रोगों के शिकार होते हैं। रोगों से बचने का सरल उपाय केवल यही है कि जन सामान्य को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया जा सके। स्वच्छ भारत ही स्वस्थ भारत बन सकता है। स्वच्छता प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव में होनी चाहिए। बाल्यकाल में ही घर में माता-पिता व पाठशाला में अध्यापक वर्ग का कर्तव्य है कि बच्चों के मन पर सफ़ाई के संस्कार डालें। स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए सभी नागरिकों को युद्ध स्तर पर काम करना होगा।
प्राय: देखने में आ रहा है कि व्यक्ति की मनोवृत्ति दो प्रकार की होती है। स्वार्थ वृत्ति और परार्थ वृत्ति। स्वार्थ अर्थात अपना और परार्थ अर्थात पराया। स्वार्थ बुद्धि स्वभाव वाले केवल स्वयं को सम्मुख रखते हैं और ऐसे लोग संकीर्ण सोच के दृष्टिकोण को लेकर कार्य क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं औरों को भी स्वार्थी बनने की प्रेरणा व सीख देते हैं। इस वृत्ति के कारण जो भी जड़ व चेतन जिन के वे स्वामी हैं उन की देखभाल के प्रति सतर्क व सावधान रहते हैं और नहीं चाहते कि इनमें से किसी की कुछ भी क्षति हो। स्वार्थ की पराकाष्ठा के कारण व्यक्ति अपने और पराए में बंट गया है। भारत में यह स्वार्थ मनोवृत्ति अधिक मात्रा में प्रचलित है।भारत की जनता और दूसरे देशों की जनता में यही अंतर है कि हम स्वार्थी हो चुके हैं। हम केवल अपना सोचते हैं, देश का नहीं। मकान तो अपना है परन्तु गली सरकार की है। दुकान तो अपनी है परन्तु सड़क सरकार की है।सभी सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फैलाना हमारा मानों मौलिक अधिकार है और सफ़ाई का उत्तरदायित्व सरकार का है। रेल गाड़ी में सभी सुविधाएं हमें उपलब्ध होनी ही चाहिए, रेलगाड़ी सरकार की संपत्ति है, सफ़ाई का दायित्व भी सरकार का ही है। यात्री गंदी रेलगाड़ी में सफर करना नहीं चाहते परन्तु गाड़ी को गंदगी से बचाने के कर्तव्य को महत्व भी तो नहीं देते। ऐसे लोगों का मानना है कि सभी सार्वजनिक स्थानों की सफ़ाई का काम सरकार का है। पार्क तो होने ही चाहिए परन्तु पार्क को साफ़ सुथरा रखना भी सरकार का ही काम है। इसी मनोवृत्ति के कारण अधिकांश लोग तन्मयता से काम नहीं करते। यदि यह मनोवृत्ति बन जाए कि राष्ट्र की उन्नति के लिए काम कर रहे हैं तो देश बहुत ऊँचा उठ सकता है। कर्म के साथ-साथ भावनाएँ भी महत्व रखती हैं। कर्तव्य निष्ठा ही कर्म क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि कर्तव्य कहते हैं करने योग्य कर्मों को। जो कुछ भी हमारे करने के योग्य है अथवा जो कुछ करने के लिए हमें नियुक्त किया गया है, उसे हम उतरदायित्वपूर्ण ढंग से करते हैं, तो उसे कर्तव्य निष्ठ कहा जाता है। मनुष्य को अपना कर्तव्य, कर्तव्य निष्ठा के साथ करना चाहिए। अपने आस-पास की सफ़ाई हमारे प्राथमिक कर्तव्यों में होनी चाहिए।
आज का आदमी यह तो अवश्य याद करता है कि परिवार, समाज, राष्ट्र ने मुझे क्या दिया? मगर यह भूल जाता है कि मैंने देश को क्या दिया है। दूसरों को हमारे साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए यह तो ध्यान में रखा जाता है मगर हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए, ये सोचना हमने छोड़ दिया है। कर्तव्य पालन में कहीं भी भूल अथवा त्रुटि न हो, इसपर तो विशेष ध्यान कोई विरला ही दे रहा है, परन्तु अधिकतर तो अधिकारों की जंग की स्पर्धा चहुँ ओर दृष्टिगोचर हो रही है।
केवल अधिकार नहीं अपने कर्तव्यों का पालन यथावत करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य ही नहीं अपितु परम धर्म है। महत्वपूर्ण यह नहीं कि हमें अधिकार मिलना ही चाहिए,महत्वपूर्ण यह है कि कर्तव्य का पालन यथावत हुआ है या नहीं। जितना दायित्व घर का, समाज का, देश का हमारे प्रति है, ठीक उतना ही दायित्व घर, समाज और देश के प्रति हमारा भी है। घर-समाज-देश के प्रति अपने दायित्वों को पूर्ण न करना कृतघ्नता है क्योंकि ऐसा करना अपनी जिम्मेवारियों से भागना है
भारतीय राजनीति अपनी महत्वाकाक्षाओं को पूरा करने के लिए देश को जाति और धर्म के आधार पर विभाजित तो कर ही रही है। आश्चर्य तब होता है कि जब राजनीति करने वाले स्वच्छता अभियान को भी राजनीतिक रूप में ले लेते हैं। पिछले कुछ दिनों अपने ही क्षेत्र की सफ़ाई को ले कर जब हमने सोसाइटी के प्रधान से सहयोग लेना चाहा तो उनका दो टूक जवाब कि यह सफ़ाई का काम हमारा नहीं, यह तो मोदी सरकार का है। इसको दूषित मानसिकता के अतिरिक्त क्या कहा जा सकता है?

हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत-माता है, केवल भारत नही। माता शब्द हटा दीजिये तो भारत केवल जमीन का टुकडा मात्र रह जायेगा। इस भूमि के साथ हमारा ममत्व तब आता है, जब माता वाला सम्बन्ध जुडता है। कोई भी भूमि तब तक देश नही कहला सकती जब तक उसमें रहने वालों का भाव माता-पुत्र का न हो। पुत्र रूप ‘एक जन’ और माता रूपी भूमि के मिलन से ही देश की सृष्टि होती है। देश के प्रति अपने कर्तव्यों का भलीभाँति पालन, यही देशभक्ति है। देशभक्ति केवल देश पर शहीद हो जाना ही नहीं है, अपितु देश के लिए छोटे-छोटे काम तो सभी देश वासी कर ही सकते हैं जिससे देश न केवल स्वच्छ रहेगा अपितु स्वस्थ भी रहेगा। कचरा सड़क पर न फेंके, सड़कों, दीवारों पर न थूकें और नोटों पर और दीवारों पर न लिखें। सार्वजनिक शौचालयों को साफ़ रखें।यथा संभव प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग न करें। ये केवल गंदगी ही नहीं फैलाती, पशुओं के लिए जानलेवा भी सिद्ध हो रही हैं। लोग अपनी रसोई का waste इन थैलियों में डाल कर थैलियों को कूड़े के ढेर पर फेंक देते हैं और पशु waste के साथ प्लास्टिक को भी निगल जाते हैं, जो प्राण घातक है। मूक प्राणियों के प्रति यह अक्षम्य अपराध है। प्लास्टिक के प्रयोग पर भी प्रतिबंध लगना ही चाहिए।
समाज का एक वर्ग अपने घरों में शौक से और सुरक्षा की दृष्टि से कुत्ते पालते हैं और इन कुत्तों को शौच अादि से निवृत्त करवाने के लिए सड़कों पर या सार्वजनिक स्थानों पर ले जाते हैं। इन का ऐसा करना न केवल कुकृत्य है अपितु अत्यंत ही अशोभनीय और निन्दनीय कृत्य है। इन लोगों को इस कृत्य के लिए टोकना अथवा समझाना भी सरल काम नहीं है। समझाना मानो पास -पड़ोस के साथ संबंध बिगाड़ना है। प्रशासन को ही इस दिशा में कड़े नियम बनाने होंगे।
यह बात भलीभाँति सब को स्मरण रहे कि जब तक हम स्वयं नहीं सुधरेंगे तब तक देश को सुधारने की कल्पना दिवास्वप्न के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।
स्वच्छता अभियान को जन आंदोलन बनाना चाहिए और हम सभी को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए। हम सभी लोग मिलकर एक जुट हो कर अपने भारत को स्वच्छ क्यों नहीं बना सकते? बना सकतें हैं।आवश्यकता है इच्छाशक्ति की। हम सभी कर्तव्य को महत्व देंगे, जनजागृति अभियान चलायेंगे। कहा भी गया है कि हम बदलेंगे तो युग बदलेगा, हम सुधरेंगे तो युग सुधरेगा। हम से है देश, हम ही देश का नव निर्माण करेंगें। भारत का सुनहरा भविष्य हम ही रचेंगें।।
आइए इसी सकारात्मक सोच के साथ सफ़ाई के प्रति स्वयं जागरूक रहेंगे, अन्यों को प्रेरित करेंगे तब हम अपने देश को “स्वच्छ भारत,स्वस्थ भारत” के प्रण को पूरा कर पायेंगे।
जयहिंद ,जय भारत
राज कुकरेजा/ करनाल
Twitter @Rajkukreja16

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